अभी नहीं अभी ज़ंजीर-ए-ख़्वाब बरहम है
अभी नहीं अभी दामन के चाक का ग़म है
अभी नहीं अभी दर बाज़ है उमीदों का
अभी नहीं अभी सीने का दाग़ जलता है
अभी नहीं अभी पलकों पे ख़ूँ मचलता है
अभी नहीं अभी कम-बख़्त दिल धड़कता है
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हवा चले वरक़-ए-आरज़ू पलट जाए
हर ख़्वाब के मकाँ को मिस्मार कर दिया है
ख़जिल चराग़ों से अहल-ए-वफ़ा को होना है
एक लम्हे से दूसरे लम्हे तक
तन्हाई की ये कौन सी मंज़िल है रफ़ीक़ो
कहने को तो हर बात कही तेरे मुक़ाबिल
सीने में जलन आँखों में तूफ़ान सा क्यूँ है
ये क्या है मोहब्बत में तो ऐसा नहीं होता
उस को किसी के वास्ते बे-ताब देखते
तिरा ख़याल भी तेरी तरह सितमगर है
वामांदगी-ए-शौक़