हर मुलाक़ात का अंजाम जुदाई क्यूँ है
अब तो हर वक़्त यही बात सताती है हमें
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अहद-ए-हाज़िर की दिल-रुबा मख़्लूक़
आँख की ये एक हसरत थी कि बस पूरी हुई
नया अमृत
कौन सी बात है जो उस में नहीं
ये क्या जगह है दोस्तो ये कौन सा दयार है
अपनी याद में
सीने में जलन आँखों में तूफ़ान सा क्यूँ है
अक्स को क़ैद कि परछाईं को ज़ंजीर करें
जिस्म की कश्ती में आ
हम पढ़ रहे थे ख़्वाब के पुर्ज़ों को जोड़ के
दिल में रखता है न पलकों पे बिठाता है मुझे
खेल का नतीजा