मिरी बातों से अब आज़ुर्दा न होना साक़ी
इस घड़ी अक़्ल मिरी मुझ से जुदा फिरती है
Wasi Shah
Gulzar
Mohsin Naqvi
Ahmad Faraz
Parveen Shakir
Anwar Masood
Allama Iqbal
Habib Jalib
Javed Akhtar
Mir Taqi Mir
Rahat Indori
Jaun Eliya
Love Poetry
Funny Poetry
Sad Poetry
Rain Poetry
Sharabi Poetry
Friends Poetry
(398) Peoples Rate This
एक मुद्दत से तलबगार हूँ किन का इन का
कुन के कहने में जो हुआ सो हुआ
रोना वही जो ख़ौफ़-ए-इलाही से रोइए
सब मुख़ालिफ़ जब किनारे हो गए
जब से तेरी नज़र पड़ी है झलक
न बुलबुल में न परवाने में देखा
ख़ाकसारों का दिल ख़ज़ीना है
नज़र में बंद करे है तू एक आलम को
हस्ती से ता-अदम है सफ़र दो क़दम की राह
जब आप से ही गुज़र गए हम
कोई है सुर्ख़-पोश कोई ज़र्द-पोश है
छुपाता क्या है मुँह कब तक छुपेगा