नज़र में बंद करे है तू एक आलम को
फ़ुसूँ है सेहर है जादू है क्या है आँखों में
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ज़र्फ़ टूटा तो वस्ल होता है
तबीबों की तवज्जोह से मरज़ होने लगा दूना
क्यूँ मोज़ाहिम है मेरे आने से
तिरा दिल यार अगर माइल करे है
मज़हर-ए-हक़ कब नज़र आता है इन शैख़ों के तईं
अज़ल से दिल है सज्दा में तिरे अबरू के मस्जिद में
देख बुनियाद रब की आदम है
हम सीं मस्तों को बस है तेरी निगाह
जिस ने आदम के तईं जाँ बख़्शा
साक़ी मुझे ख़ुमार सताए है ला शराब
आगे क्या तुम सा जहाँ में कोई महबूब न था
गुल की और बुलबुल की सोहबत को चमन का शाना है