नौ-जवानों को देख कर 'हातिम'
याद अहद-ए-शबाब आवे है
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दिल उस की तार-ए-ज़ुल्फ़ के बल में उलझ गया
मस्जिद में सर पटकता है तो जिस के वास्ते
किस से कहूँ मैं हाल-ए-दिल अपना कि ता सुने
देखा किसी ने हम से ज़माने ने क्या किया
बस नहीं चलता जो उस दम उन के ऊपर गर पड़े
कहो तो किस तरह आवे वहाँ नींद
नहीं है शिकवा अगर वो नज़र नहीं आता
आ कर तिरी गली में क़दम-बोसी के लिए
रोना वही जो ख़ौफ़-ए-इलाही से रोइए
आगे क्या तुम सा जहाँ में कोई महबूब न था
मुल्क-ए-अदम से दहर के मातम-कदे के बीच
फ़ानूस तन में देख ले रौशन हैं जूँ चराग़