किस से कहूँ मैं हाल-ए-दिल अपना कि ता सुने
इस शहर में रहा भी कोई दर्द-मंद है
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देख कर हर उज़्व उन का दिल हो पानी बह चला
कशिश से दिल की उस अबरू-कमाँ को हम रखा बहला
तू अपने मन का मनका फेर ज़ाहिद वर्ना क्या हासिल
वस्फ़ अँखियों का लिखा हम ने गुल-ए-बादाम पर
मुद्दत से ख़्वाब में भी नहीं नींद का ख़याल
दर्द तू मेरे पास से मरते तलक न जाइयो
तू सुब्ह-दम न नहा बे-हिजाब दरिया में
दहन है तंग शकर और शकर है तिरा है कलाम
हमारी गुफ़्तुगू सब से जुदा है
जब आप से ही गुज़र गए हम
क़ुर्बान सौ तरह से किया तुझ पर आप को
इश्क़ की राह में मैं मस्त की तरह