क़ुर्बान सौ तरह से किया तुझ पर आप को
तू भी कभू तो जान न आया बजाए ईद
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देखना उस की तजल्ली का जिसे मंज़ूर है
मैं उस की चश्म से ऐसा गिरा हूँ
क्या उस की सिफ़त में गुफ़्तुगू है
हमारी गुफ़्तुगू सब से जुदा है
ख़ुदा को जिस से पहुँचें हैं वो और ही राह है ज़ाहिद
जो अज़ल में क़लम चली सो चली
दर्द तू मेरे पास से मरते तलक न जाइयो
पहन कर जामा बसंती जो वो निकला घर सूँ
आब-ए-हयात जा के किसू ने पिया तो क्या
वहशत से हर सुख़न मिरा गोया ग़ज़ाला है
ये मसला शैख़ से पूछो हम इस झगड़े से फ़ारिग़ है
मशरब में तो दुरुस्त ख़राबातियों के है