क़िस्सा-ए-मजनूँ-ओ-फ़र्हाद भी इक पर्दा है
जो फ़साना है यहाँ शरह-ओ-बयाँ है अपना
Jaun Eliya
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जो मिरे हम-अस्र हम-सोहबत थे सो सब मर गए
हाथ में देख कर तिरे मरहम
हमारी अक़्ल-ए-बे-तदबीर पर तदबीर हँसती है
तू अपने मन का मनका फेर ज़ाहिद वर्ना क्या हासिल
मय हो अब्र ओ हवा नहीं तो न हो
एहसान तिरा दिल मिरा क्या याद करेगा
साफ़ दिल है तो आ कुदूरत छोड़
चमन ख़राब किया, हो ख़िज़ाँ का ख़ाना-ख़राब
अजब अहवाल देखा इस ज़माने के अमीरों का
तुम्हारी देख सज ऐ तंग-पोशो
ने शिकवा-मंद दिल से न अज़-दस्त-दीदा हूँ
जी उठूँ फिर कर अगर तू एक बोसा दे मुझे