साफ़ दिल है तो आ कुदूरत छोड़
मिल हर इक रंग बीच आब की तरह
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दहन है तंग शकर और शकर तिरा है कलाम
तुम्हारी देख सज ऐ तंग-पोशो
हो रहा है अब्र और करता है वो जानाना रक़्स
इस ज़माने में न हो क्यूँकर हमारा दिल उदास
होवे वो शोख़-चश्म अगर मुझ से चार चश्म
मुझे क्या देख कर तू तक रहा है
इश्क़ की राह में मैं मस्त की तरह
मुद्दत हुई पलक से पलक आश्ना नहीं
यूँ न हो यूँ हो यूँ हुआ सो क्यूँ
इश्क़ में पास-ए-जाँ नहीं है दुरुस्त
बैत-बहसी न कर ऐ फ़ाख़्ता गुलशन में कि आज
मज्लिस में रात गिर्या-ए-मस्ताँ था तुझ बग़ैर