सब्र बिन और कुछ न लो हमराह
कूचा-ए-इश्क़ तंग है यारो
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मुद्दत हुई पलक से पलक आश्ना नहीं
तिरी मेहराब में अबरू की ये ख़ाल
ऐ ख़िरद-मंदो मुबारक हो तुम्हें फ़र्ज़ानगी
देख बुनियाद रब की आदम है
जिस तरफ़ को मैं गया रोता हुआ
तिरी जो ज़ुल्फ़ का आया ख़याल आँखों में
गुल की और बुलबुल की सोहबत को चमन का शाना है
फ़ानूस तन में देख ले रौशन हैं जूँ चराग़
बे तिरे जान न थी जान मिरी जान के बीच
मय हो अब्र ओ हवा नहीं तो न हो
हक़ रखे उस को सलामत हिन्द में
मुद्दत से आरज़ू है ख़ुदा वो घड़ी करे