हक़ रखे उस को सलामत हिन्द में
जिस से ख़ुश लगता है हिन्दोस्ताँ मुझे
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अदल से कर सल्तनत ऐ दिल तू तन के मुल्क में
तेरे आगे ले चुका ख़ुसरव लब-ए-शीरीं से काम
मैं जाँ-ब-लब हूँ ऐ तक़दीर तेरे हाथों से
तरीक़त में अगर ज़ाहिद मुझे गुमराह जाने है
मैं ज़ात का उस की आश्ना हूँ
केसर में इस तरह से आलूदा है सरापा
तिरी मेहराब में अबरू की ये ख़ाल
दर-ओ-दीवार-ए-चमन आज हैं ख़ूँ से लबरेज़
इस वास्ते निकलूँ हूँ तिरे कूचे से बच बच
इस दुख में हाए यार यगाने किधर गए
मेरे हवास-ए-ख़मसा उसे देख उड़ गए
हमारी अक़्ल-ए-बे-तदबीर पर तदबीर हँसती है