इस दुख में हाए यार यगाने किधर गए
सब छोड़ हम को ग़म में न जाने किधर गए
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हस्ती की क़ैद से ऐ दिल आज़ाद होइए
'हातिम' उस ज़ालिम के अबरू को न छेड़
नासूर की सिफ़त है न होगा कभू वो बंद
सब मुख़ालिफ़ जब किनारे हो गए
इश्क़ नहीं कोई नहंग है यारो
गुलशन-ए-दहर में सौ रंग हैं 'हातिम' उस के
अभी मस्जिद-नशीन-ए-तारुम-ए-अफ़्लाक हो जावे
मेरा माशूक़ है मज़ों में भरा
शैख़ उस की चश्म के गोशे से गोशे हो कहीं
दहन है तंग शकर और शकर तिरा है कलाम
मय हो अब्र ओ हवा नहीं तो न हो
दोस्तों से दुश्मनी और दुश्मनों से दोस्ती