शैख़ उस की चश्म के गोशे से गोशे हो कहीं
उस तरफ़ मत जाओ नादाँ राह मय-ख़ाने की है
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मुद्दत से ख़्वाब में भी नहीं नींद का ख़याल
करूँ हूँ रात दिन फेरे कई फेरे मियाँ साहिब
अनल-हक़ की हक़ीक़त को जो हो मंसूर सो जाने
ऐ दिल न कर तू फ़िक्र पड़ेगा बला के हाथ
दे के दिल उस के हाथ अपने हाथ
नमक-ए-हुस्न का सुनता हूँ तिरे जूँ जूँ शोर
आरिज़ से उस के ज़ुल्फ़ में क्यूँ-कर है रौशनी
क्या बड़ा ऐब है इस जामा-ए-उर्यानी में
हाजत चराग़ की है कब अंजुमन में दिल के
खुल गई जिस की आँख मिस्ल-ए-हबाब
ताबे रज़ा का उस की अज़ल सीं किया मुझे
अहल-ए-म'अनी जुज़ न बूझेगा कोई इस रम्ज़ को