दे के दिल उस के हाथ अपने हाथ
हम ने सौदा किया है दस्त-ब-दस्त
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तिरी भुवाँ की तेग़ जब आई नज़र मुझे
देख कर हर उज़्व उन का दिल हो पानी बह चला
आई ईद व दिल में नहीं कुछ हवा-ए-ईद
हुस्न आईना फ़ाश करता है
शहर में चर्चा है अब तेरी निगाह-ए-तेज़ का
तिरी जो ज़ुल्फ़ का आया ख़याल आँखों में
जो मय-ख़ाने में जाता था क़दम रखते झिझकता था
मोतकिफ़ हो शैख़ अपने दिल में मस्जिद से निकल
मुल्क-ए-अदम से दहर के मातम-कदे के बीच
तू सुब्ह-दम न नहा बे-हिजाब दरिया में
खुल गई जिस की आँख मिस्ल-ए-हबाब
साहिबान-ए-क़स्र को मिलती नहीं है ब'अद-ए-मर्ग