आई ईद व दिल में नहीं कुछ हवा-ए-ईद
ऐ काश मेरे पास तू आता बजाए ईद
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न कुछ सितम से तिरे आह आह करता हूँ
एक दिन पूछा न 'हातिम' को कभू उस ने कि दोस्त
जब वो आली-दिमाग़ हँसता है
हम सीं मस्तों को बस है तेरी निगाह
तुम्हारी देख सज ऐ तंग-पोशो
नासेह बग़ल में आ कर दुश्मन हुआ हमारा
तीर-ए-निगह लगा के तुम कहते हो फिर लगा न ख़ूब
कोई देता नहीं है दाद बे-दाद
नहीं है शिकवा अगर वो नज़र नहीं आता
क्या बड़ा ऐब है इस जामा-ए-उर्यानी में
शहर में चर्चा है अब तेरी निगाह-ए-तेज़ का
तिरी जो ज़ुल्फ़ का आया ख़याल आँखों में