नहीं है शिकवा अगर वो नज़र नहीं आता
किसू ने देखी नहीं अपनी जान की सूरत
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न बुलबुल में न परवाने में देखा
मिरी बातों से अब आज़ुर्दा न होना साक़ी
आज हमें और ही नज़र आता है कुछ सोहबत का रंग
दिल मिरा आज यार में है गा
दिल था बग़ल में मुद्दई ख़ूब हुआ जो ग़म हुआ
इस ज़माने में न हो क्यूँकर हमारा दिल उदास
नासेह बग़ल में आ कर दुश्मन हुआ हमारा
मौसम-ए-गुल का मगर क़ाफ़िला जाता है कि आज
न कुछ सितम से तिरे आह आह करता हूँ
मुद्दत से ख़्वाब में भी नहीं नींद का ख़याल
होली
तीर-ए-निगह लगा के तुम कहते हो फिर लगा न ख़ूब