नमक-ए-हुस्न का सुनता हूँ तिरे जूँ जूँ शोर
तूँ तूँ मिलने की मिरे दिल में हवस आती है
Jaun Eliya
Ahmad Faraz
Parveen Shakir
Mohsin Naqvi
Gulzar
Mir Taqi Mir
Rahat Indori
Javed Akhtar
Wasi Shah
Habib Jalib
Faiz Ahmad Faiz
Allama Iqbal
Love Poetry
Funny Poetry
Sad Poetry
Rain Poetry
Sharabi Poetry
Friends Poetry
(396) Peoples Rate This
यूँ न हो यूँ हो यूँ हुआ सो क्यूँ
जिस ने आदम के तईं जाँ बख़्शा
न कुछ सितम से तिरे आह आह करता हूँ
मज्लिस में रात गिर्या-ए-मस्ताँ था तुझ बग़ैर
तेरे आगे ले चुका ख़ुसरव लब-ए-शीरीं से काम
ऐ दिल न कर तू फ़िक्र पड़ेगा बला के हाथ
है अबस 'हातिम' ये सब मज़मून ओ मअ'नी का तलाश
इश्क़ की राह में मैं मस्त की तरह
मुझे क्या देख कर तू तक रहा है
दर्द तू मेरे पास से मरते तलक न जाइयो
दे के दिल उस के हाथ अपने हाथ
देखूँ हूँ तुझ को दूर से बैठा हज़ार कोस