नमाज़ियों ने तुझ अबरू को देख मस्जिद में
ब-सम्त-ए-क़िबला सुजूद-ओ-क़याम भूल गए
Faiz Ahmad Faiz
Gulzar
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Wasi Shah
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Parveen Shakir
Anwar Masood
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तेरे आने से यू ख़ुशी है दिल
समझते हम नहीं जो तुम इशारों बीच कहते हो
इश्क़ की राह में मैं मस्त की तरह
तीर-ए-निगह लगा के तुम कहते हो फिर लगा न ख़ूब
दर्द-ए-दिल मेरी आह से पूछो
ज़ोर यारो आज हम ने फ़तह की जंग-ए-फ़लक
दिल था बग़ल में मुद्दई ख़ूब हुआ जो ग़म हुआ
आई ईद व दिल में नहीं कुछ हवा-ए-ईद
मस्तों का दिल है शीशा और संग-दिल है साक़ी
हम छनालों की छोड़ दी यारी
इस वास्ते निकलूँ हूँ तिरे कूचे से बच बच
तबीबों की तवज्जोह से मरज़ होने लगा दूना