आई ईद व दिल में नहीं कुछ हवा-ए-ईद
ऐ काश मेरे पास तू आता बजाए ईद
क़ुर्बान सौ तरह से किया तुझ पर आप को
तू भी कभू तो जान न आया बजाए ईद
जितने हैं जामा-ज़ेब जहाँ में सभों के बीच
सजती है तेरे बर में सरापा क़बा-ए-ईद
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गर भला मानस है तो ख़ंदों से तू मिल मिल न हँस
हाथ आता नहीं बग़ैर नसीब
बंदा अगर जहाँ में बजाए ख़ुदा नहीं
नहीं है शिकवा अगर वो नज़र नहीं आता
तिरी भुवाँ की तेग़ जब आई नज़र मुझे
निगाहें जोड़ और आँखें चुरा टुक चल के फिर देखा
ज़ोर यारो आज हम ने फ़तह की जंग-ए-फ़लक
जब आप से ही गुज़र गए हम
मैं पीर हो गया हूँ और अब तक जवाँ है दर्द
इन दिनों सब को हुआ है साफ़-गोई का तलाश
मशरब में तो दुरुस्त ख़राबातियों के है
न इतना चाहिए ऐ पुर-शिकम ख़्वाब