निगाहें जोड़ और आँखें चुरा टुक चल के फिर देखा
मिरे चेहरे उपर की शाह-ए-ख़ूबाँ ने नज़र सानी
Javed Akhtar
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नमक-ए-हुस्न का सुनता हूँ तिरे जूँ जूँ शोर
एक तो तिरी दौलत था ही दिल ये सौदाई
मैं जितना ढूँढता हूँ उस को उतना ही नहीं पाता
इस दुख में हाए यार यगाने किधर गए
बुल-हवस गो करें तेरे लब-ए-शीरीं पर हुजूम
बदन पर कुछ मिरे ज़ाहिर नहीं और दिल में सोज़िश है
कलेजा मुँह को आया और नफ़स करने लगा तंगी
हम छनालों की छोड़ दी यारी
असीरों का नहीं कुछ शोर-ओ-ग़ुल ये आज ज़िंदाँ में
आब-ए-हयात जा के किसू ने पिया तो क्या
देखना उस की तजल्ली का जिसे मंज़ूर है
अदल से कर सल्तनत ऐ दिल तू तन के मुल्क में