पड़ी फिरती हैं कई लैला-ओ-शीरीं हर जा
पर कोई हाए यहाँ मजनूँ-ओ-फ़रहाद नहीं
Parveen Shakir
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Anwar Masood
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Faiz Ahmad Faiz
Gulzar
Wasi Shah
Javed Akhtar
Mir Taqi Mir
Allama Iqbal
Habib Jalib
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आब-ए-हयात जा के किसू ने पिया तो क्या
दे के दिल उस के हाथ अपने हाथ
शैख़ उस की चश्म के गोशे से गोशे हो कहीं
जब से तेरी नज़र पड़ी है झलक
तुम तो बैठे हुए पुर-आफ़त हो
छुपाता क्या है मुँह कब तक छुपेगा
ख़ुदा के वास्ते उस से न बोलो
तुम्हारी देख सज ऐ तंग-पोशो
तुम कि बैठे हुए इक आफ़त हो
'हातिम' उस ज़ालिम के अबरू को न छेड़
दिल उस की तार-ए-ज़ुल्फ़ के बल में उलझ गया
किया था दिन का वादा रात को आया तो क्या शिकवा