'हातिम' उस ज़ालिम के अबरू को न छेड़
हाथ कट जावेगा ऐ नादाँ है तेग़
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जी तरसता है यार की ख़ातिर
न मोहतसिब से ये मुझ को ग़रज़ न मस्त से काम
इतना मैं इंतिज़ार किया उस की राह में
शम्अ हर शाम तेरे रोने पर
कौन दिल है कि तिरे दर्द में बीमार नहीं
हर गुल उस बाग़ का नज़रों में दहाँ है गोया
ताबे रज़ा का उस की अज़ल सीं किया मुझे
जब से तेरी नज़र पड़ी है झलक
कई दीवान कह चुका 'हातिम'
कहो तो किस तरह आवे वहाँ नींद
ऐ मुसलमानो बड़ा काफ़िर है वो
हैराँ हैं अपने अपने जो देखा सो काम में