ऐ मुसलमानो बड़ा काफ़िर है वो
जो न होवे ज़ुल्फ़-गीराँ का मुतीअ
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क्या उस की सिफ़त में गुफ़्तुगू है
दिल-ए-सद-चाक मिरा राह यहाँ कब पाए
क्यूँकर इन काली बलाओं से बचेगा आशिक़
कभू पहुँची न उस के दिल तलक रह ही में थक बैठी
साक़ी मुझे ख़ुमार सताए है ला शराब
कौन दिल है कि तिरे दर्द में बीमार नहीं
हैराँ हैं अपने अपने जो देखा सो काम में
कोई देता नहीं है दाद बे-दाद
देखूँ हूँ तुझ को दूर से बैठा हज़ार कोस
होली
किस तरह पहुँचूँ मैं अपने यार किन पंजाब में
नासूर की सिफ़त है न होगा कभू वो बंद