ऐ ख़िज़ाँ भाग जा चमन से शिताब
वर्ना फ़ौज-ए-बहार आवे है
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ये किस मज़हब में और मशरब में है हिन्दू मुसलमानो
हम बहुत देखे फ़रंगिस्तान के हुस्न-ए-सबीह
कोई देता नहीं है दाद बे-दाद
सनम के देख कर लब और दहन सुर्ख़
दर-ओ-दीवार-ए-चमन आज हैं ख़ूँ से लबरेज़
तू अपने मन का मनका फेर ज़ाहिद वर्ना क्या हासिल
यूँ न हो यूँ हो यूँ हुआ सो क्यूँ
अदल से कर सल्तनत ऐ दिल तू तन के मुल्क में
आज दिलबर के नाम को रट रट
न मैं ने कुछ कहा तुझ से न तू ने मुझ से कुछ पूछा
मय हो अब्र ओ हवा नहीं तो न हो
अहल-ए-म'अनी जुज़ न बूझेगा कोई इस रम्ज़ को