दर-ओ-दीवार-ए-चमन आज हैं ख़ूँ से लबरेज़
दस्त-ए-गुल-चीं से मबादा कोई दिल टूटा है
Ahmad Faraz
Faiz Ahmad Faiz
Anwar Masood
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Habib Jalib
Mir Taqi Mir
Rahat Indori
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Allama Iqbal
Wasi Shah
Gulzar
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हाजत चराग़ की है कब अंजुमन में दिल के
कभू तू रो तो उस को ख़ाक ऊपर जा के ऐ लैला
तुर्फ़ा माजून है हमारा यार
फ़िक्र में मुफ़्त उम्र खोना है
गदा को गर क़नाअत हो तो फाटा चीथड़ा बस है
समझते हम नहीं जो तुम इशारों बीच कहते हो
मुद्दत से ख़्वाब में भी नहीं नींद का ख़याल
तिरी भुवाँ की तेग़ जब आई नज़र मुझे
आज हमें और ही नज़र आता है कुछ सोहबत का रंग
दिल-ए-सद-चाक मिरा राह यहाँ कब पाए
अदा-ओ-नाज़ ओ करिश्मा जफ़ा-ओ-जौर-ओ-सितम
साहिबान-ए-क़स्र को मिलती नहीं है ब'अद-ए-मर्ग