हाजत चराग़ की है कब अंजुमन में दिल के
मानिंद-ए-शम्अ रौशन हर एक उस्तुख़्वाँ है
Habib Jalib
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इश्क़ नहीं कोई नहंग है यारो
दिल-ए-सद-चाक मिरा राह यहाँ कब पाए
कहो तो किस तरह आवे वहाँ नींद
किस तरह पहुँचूँ मैं अपने यार किन पंजाब में
रात दिन यार बग़ल में हो तो घर बेहतर है
जवाब-ए-नामा या देता नहीं या क़ैद करता है
तू अपने मन का मनका फेर ज़ाहिद वर्ना क्या हासिल
इन दिनों हम से जो वहशी की तरह भड़को हो
कभू जो शैख़ दिखाऊँ मैं अपने बुत के तईं
जिस ने पाया उसे सो है ख़ामोश
हमारी सैर को गुलशन से कू-ए-यार बेहतर था
दोस्तों से दुश्मनी और दुश्मनों से दोस्ती