रात दिन यार बग़ल में हो तो घर बेहतर है
वर्ना इस घर के तो रहने से सफ़र बेहतर है
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Gulzar
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दिल-ए-सद-चाक मिरा राह यहाँ कब पाए
जिस कूँ पी का ख़याल होता है
तिरी भुवाँ की तेग़ जब आई नज़र मुझे
खेल सब छोड़ खेल अपना खेल
एक तो तिरी दौलत था ही दिल ये सौदाई
फ़िल-हक़ीक़त कोई नहीं मरता
किस सितमगर का गुनाहगार हूँ अल्लाह अल्लाह
मोतकिफ़ हो शैख़ अपने दिल में मस्जिद से निकल
रखता हूँ मैं हक़ पर नज़र कोई कुछ कहो कोई कुछ कहो
निगाहें जोड़ और आँखें चुरा टुक चल के फिर देखा
तू जो कहता है बोलता क्या है
मिला दिए ख़ाक में ख़ुदा ने पलक के लगते ही शाह लाखों