रात दिन जारी हैं कुछ पैदा नहीं इन का कनार
मेरे चश्मों का दो-आबा मजम-उल-बहरैन है
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मेरी फ़रियाद कोई नईं सुनता
दिल को मारा चश्म ने अबरू की तलवारों से आज
बैत-बहसी न कर ऐ फ़ाख़्ता गुलशन में कि आज
कलेजा मुँह को आया और नफ़स करने लगा तंगी
होली के अब बहाने छिड़का है रंग किस ने
मिला दिए ख़ाक में ख़ुदा ने पलक के लगते ही शाह लाखों
ऐसी हवा बही कि है चारों तरफ़ फ़साद
मालूम है किसू को कि वो आज शोला-ख़ू
मुझे क्या देख कर तू तक रहा है
दौरा है जब से बज़्म में तेरी शराब का
तिरा दिल यार अगर माइल करे है
हैराँ हैं अपने अपने जो देखा सो काम में