मेरी फ़रियाद कोई नईं सुनता
कोई इस शहर में भी बस्ता है
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एक बोसा माँगता है तुम से 'हातिम' सा गदा
कलेजा मुँह को आया और नफ़स करने लगा तंगी
पगड़ी अपनी यहाँ सँभाल चलो
खुल गई जिस की आँख मिस्ल-ए-हबाब
ब-तंग आया हूँ इस जाहिल के हाथों इस क़दर 'हातिम'
तेरे आगे ले चुका ख़ुसरव लब-ए-शीरीं से काम
इतना मैं इंतिज़ार किया उस की राह में
हम सीं मस्तों को बस है तेरी निगाह
मुद्दत हुई पलक से पलक आश्ना नहीं
मय हो अब्र ओ हवा नहीं तो न हो
तुम कि बैठे हुए इक आफ़त हो
क्या उस की सिफ़त में गुफ़्तुगू है