मुझे क्या देख कर तू तक रहा है
तिरे हाथों कलेजा पक रहा है
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छल-बल उस की निगाह का मत पूछ
नमाज़ियों ने तुझ अबरू को देख मस्जिद में
न कुछ सितम से तिरे आह आह करता हूँ
नौ-जवानों को देख कर 'हातिम'
हाजत चराग़ की है कब अंजुमन में दिल के
मैं ज़ात का उस की आश्ना हूँ
मेरे हवास-ए-ख़मसा उसे देख उड़ गए
वहशत से हर सुख़न मिरा गोया ग़ज़ाला है
ब-तंग आया हूँ इस जाहिल के हाथों इस क़दर 'हातिम'
मौसम-ए-गुल का मगर क़ाफ़िला जाता है कि आज
तू अपने मन का मनका फेर ज़ाहिद वर्ना क्या हासिल
था पास अभी किधर गया दिल