मेरे हवास-ए-ख़मसा उसे देख उड़ गए
क्यूँ कर ठहर सकें ये कबूतर थे पर गिरे
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न बुलबुल में न परवाने में देखा
तुम्हारे इश्क़ में हम नंग-ओ-नाम भूल गए
हक़ रखे उस को सलामत हिन्द में
गुल की और बुलबुल की सोहबत को चमन का शाना है
तिरा दिल यार अगर माइल करे है
इस दुख में हाए यार यगाने किधर गए
तुम्हारी देख सज ऐ तंग-पोशो
कौन दिल है कि तिरे दर्द में बीमार नहीं
तिरी मेहराब में अबरू की ये ख़ाल
मिरा दिल बार-ए-इश्क़ ऐसा उठाने में दिलावर है
पहन कर जामा बसंती जो वो निकला घर सूँ