तिरी मेहराब में अबरू की ये ख़ाल
किधर से आ गया मस्जिद में हिन्दू
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है राह-ए-आशिक़ी तारीक और बारीक और सुकड़ी
होली के अब बहाने छिड़का है रंग किस ने
नासूर की सिफ़त है न होगा कभू वो बंद
जी तरसता है यार की ख़ातिर
नज़र से जब अकस्ता है मिरा दिल
जब तक कि गरेबान में यक तार रहेगा
पहन कर जामा बसंती जो वो निकला घर सूँ
कभू जो शैख़ दिखाऊँ मैं अपने बुत के तईं
छल-बल उस की निगाह का मत पूछ
इतना मैं इंतिज़ार किया उस की राह में
किस सितमगर का गुनाहगार हूँ अल्लाह अल्लाह
दर्द तू मेरे पास से मरते तलक न जाइयो