नासूर की सिफ़त है न होगा कभू वो बंद
जर्राह ज़ख़्म-ए-इश्क़ कूँ आ कर सिया तो क्या
Ahmad Faraz
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Rahat Indori
Gulzar
Allama Iqbal
Mohsin Naqvi
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कशिश से दिल की उस अबरू कमाँ को हम रखा बहला
जल्वा-गर फ़ानूस-ए-तन में है हमारा मन चराग़
अभी मस्जिद-नशीन-ए-तारुम-ए-अफ़्लाक हो जावे
है अबस 'हातिम' ये सब मज़मून ओ मअ'नी का तलाश
मस्जिद में सर पटकता है तो जिस के वास्ते
ऐ ख़िरद-मंदो मुबारक हो तुम्हें फ़र्ज़ानगी
साक़ी मुझे ख़ुमार सताए है ला शराब
हस्ती की क़ैद से ऐ दिल आज़ाद होइए
मय हो अब्र ओ हवा नहीं तो न हो
ऐ ख़िज़ाँ भाग जा चमन से शिताब
जिस ने आदम के तईं जाँ बख़्शा
आरिज़ से उस के ज़ुल्फ़ में क्यूँ-कर है रौशनी