साक़ी मुझे ख़ुमार सताए है ला शराब
मरता हूँ तिश्नगी से ऐ ज़ालिम पिला शराब
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मैं पीर हो गया हूँ और अब तक जवाँ है दर्द
ज़ाहिदो उठ जाओ मज्लिस से कि आज
अब्र में याद-ए-यार आवे है
इन दिनों हम से जो वहशी की तरह भड़को हो
शैख़ उस की चश्म के गोशे से गोशे हो कहीं
कोई देता नहीं है दाद बे-दाद
दुनिया ख़याल-ओ-ख़्वाब है मेरी निगाह में
ख़ूबान-ए-जहाँ हों जिस से तस्ख़ीर
दोस्तों से दुश्मनी और दुश्मनों से दोस्ती
रात दिन जारी हैं कुछ पैदा नहीं इन का कनार
मोतकिफ़ हो शैख़ अपने दिल में मस्जिद से निकल
हम छनालों की छोड़ दी यारी