सौ बार तार तार किया तो भी अब तलक
साबित वही है दस्त ओ गरेबाँ की दोस्ती
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जब से तेरी नज़र पड़ी है झलक
हुस्न आईना फ़ाश करता है
कशिश से दिल की उस अबरू कमाँ को हम रखा बहला
तिरा दिल यार अगर माइल करे है
नमक-ए-हुस्न का सुनता हूँ तिरे जूँ जूँ शोर
इस ज़माने में न हो क्यूँकर हमारा दिल उदास
ख़ुदा के वास्ते उस से न बोलो
घर-ब-घर है वो मस्त-ए-इश्वा-ओ-नाज़
मज़हर-ए-हक़ कब नज़र आता है इन शैख़ों के तईं
शहर में फिरता है वो मय-ख़्वार मस्त
क़यामत तक जुदा होवे न या-रब
तेरे आगे ले चुका ख़ुसरव लब-ए-शीरीं से काम