क़यामत तक जुदा होवे न या-रब
जुनूँ के दस्त से मेरा गरेबाँ
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दिल-ए-नाज़ुक मिरा हाथों में सँभाले रखियो
ये मसला शैख़ से पूछो हम इस झगड़े से फ़ारिग़ है
फ़ानूस तन में देख ले रौशन हैं जूँ चराग़
गज़क की इस क़दर ऐ मस्त तुझ को क्या शिताबी है
कहो तो किस तरह आवे वहाँ नींद
ब-तंग आया हूँ इस जाहिल के हाथों इस क़दर 'हातिम'
मिला दिए ख़ाक में ख़ुदा ने पलक के लगते ही शाह लाखों
आई ईद व दिल में नहीं कुछ हवा-ए-ईद
नासेह बग़ल में आ कर दुश्मन हुआ हमारा
कई फ़रहाद हैं जूया तिरे शीरीं लब के
क्यूँकर इन काली बलाओं से बचेगा आशिक़
जुम्बिश-ए-दिल नहीं बेजा तू किधर भूला है