दिल-ए-नाज़ुक मिरा हाथों में सँभाले रखियो
कहे देता हूँ ये ऐ संग-दिलाँ है शीशा
Habib Jalib
Gulzar
Rahat Indori
Anwar Masood
Ahmad Faraz
Javed Akhtar
Wasi Shah
Parveen Shakir
Faiz Ahmad Faiz
Jaun Eliya
Allama Iqbal
Mir Taqi Mir
Love Poetry
Funny Poetry
Sad Poetry
Rain Poetry
Sharabi Poetry
Friends Poetry
(404) Peoples Rate This
यार निकला है आफ़्ताब की तरह
हक़ से मिलना गेरवे कपड़ों उपर मौक़ूफ़ नईं
जब से तेरी नज़र पड़ी है झलक
मुझे तावीज़ लिख दो ख़ून-ए-आहू से कि ऐ स्यानो
पड़ी फिरती हैं कई लैला-ओ-शीरीं हर जा
दौरा है जब से बज़्म में तेरी शराब का
निगाहें जोड़ और आँखें चुरा टुक चल के फिर देखा
बे तिरे जान न थी जान मिरी जान के बीच
कोहकन जाँ-कनी है मुश्किल काम
कभू जो शैख़ दिखाऊँ मैं अपने बुत के तईं
रिआयत बूझ तू माशूक़ का जौर
शम्अ हर शाम तेरे रोने पर