कोहकन जाँ-कनी है मुश्किल काम
वर्ना बहतेरे हैं पथर फोड़े
Rahat Indori
Jaun Eliya
Wasi Shah
Mohsin Naqvi
Parveen Shakir
Mir Taqi Mir
Ahmad Faraz
Gulzar
Javed Akhtar
Faiz Ahmad Faiz
Allama Iqbal
Habib Jalib
Love Poetry
Funny Poetry
Sad Poetry
Rain Poetry
Sharabi Poetry
Friends Poetry
(391) Peoples Rate This
न मोहतसिब से ये मुझ को ग़रज़ न मस्त से काम
हैराँ हैं अपने अपने जो देखा सो काम में
ज़ाहिद को हम ने देख ख़राबात में कहा
तू जो कहता है बोलता क्या है
नौ-जवानों को देख कर 'हातिम'
जवाब-ए-नामा या देता नहीं या क़ैद करता है
शहर में चर्चा है अब तेरी निगाह-ए-तेज़ का
दिल मिरा आज यार में है गा
'हातिम' उस ज़ुल्फ़ की तरफ़ मत देख
न बुलबुल में न परवाने में देखा
रखे है शीशा मिरा संग साथ रब्त-ए-क़दीम
तेरे आगे ले चुका ख़ुसरव लब-ए-शीरीं से काम