रखे है शीशा मिरा संग साथ रब्त-ए-क़दीम
कि आठ पहर मिरे दिल को है शिकस्त से काम
Javed Akhtar
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Habib Jalib
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कोहकन जाँ-कनी है मुश्किल काम
दिल उस की तार-ए-ज़ुल्फ़ के बल में उलझ गया
मुद्दत से आरज़ू है ख़ुदा वो घड़ी करे
साफ़ दिल है तो आ कुदूरत छोड़
हैराँ हैं अपने अपने जो देखा सो काम में
फ़िल-हक़ीक़त कोई नहीं मरता
रुख़्सार के अरक़ का तिरे भाव देख कर
देखूँ हूँ तुझ को दूर से बैठा हज़ार कोस
ऐसी हवा बही कि है चारों तरफ़ फ़साद
ये किस मज़हब में और मशरब में है हिन्दू मुसलमानो
अदा-ओ-नाज़ ओ करिश्मा जफ़ा-ओ-जौर-ओ-सितम
जिस को देखा सो यहाँ दुश्मन-ए-जाँ है अपना