मुद्दत से आरज़ू है ख़ुदा वो घड़ी करे
हम तुम पिएँ जो मिल के कहीं एक जा शराब
Mir Taqi Mir
Mohsin Naqvi
Rahat Indori
Allama Iqbal
Wasi Shah
Jaun Eliya
Gulzar
Ahmad Faraz
Javed Akhtar
Faiz Ahmad Faiz
Parveen Shakir
Habib Jalib
Love Poetry
Funny Poetry
Sad Poetry
Rain Poetry
Sharabi Poetry
Friends Poetry
(545) Peoples Rate This
तू जो मूसा हो तो उस का हर तरफ़ दीदार है
हर गुल उस बाग़ का नज़रों में दहाँ है गोया
बे तिरे जान न थी जान मिरी जान के बीच
आज हमें और ही नज़र आता है कुछ सोहबत का रंग
जिस तरफ़ को मैं गया रोता हुआ
ज़र्फ़ टूटा तो वस्ल होता है
शहर में फिरता है वो मय-ख़्वार मस्त
न बुलबुल में न परवाने में देखा
ऐ ख़िज़ाँ भाग जा चमन से शिताब
साक़ी मुझे ख़ुमार सताए है ला शराब
देखने से तिरे जी पाता हूँ
न कुछ सितम से तिरे आह आह करता हूँ