मुद्दत से ख़्वाब में भी नहीं नींद का ख़याल
हैरत में हूँ ये किस का मुझे इंतिज़ार है
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इश्क़-बाज़ी बुल-हवस बाज़ी न जान
क्या सताते हो रहो बंदा-नवाज़
देख बुनियाद रब की आदम है
कभू तू रो तो उस को ख़ाक ऊपर जा के ऐ लैला
हाथ में देख कर तिरे मरहम
तिरी भुवाँ की तेग़ जब आई नज़र मुझे
हम बहुत देखे फ़रंगिस्तान के हुस्न-ए-सबीह
इस क़दर की सर्फ़ तस्ख़ीर-ए-परी-रूयाँ में उम्र
शहर में चर्चा है अब तेरी निगाह-ए-तेज़ का
मुद्दत से आरज़ू है ख़ुदा वो घड़ी करे
अनल-हक़ की हक़ीक़त को जो हो मंसूर सो जाने
ताबे रज़ा का उस की अज़ल सीं किया मुझे