कभू तू रो तो उस को ख़ाक ऊपर जा के ऐ लैला
कि बिन पानी जंगल में रूह मजनूँ की भटकती है
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तू जो कहता है बोलता क्या है
मुझे तावीज़ लिख दो ख़ून-ए-आहू से कि ऐ स्यानो
फ़िक्र में मुफ़्त उम्र खोना है
रात दिन जारी हैं कुछ पैदा नहीं इन का कनार
नज़र में उस की जो चढ़ता है सो जीता नहीं बचता
ऐ मुसलमानो बड़ा काफ़िर है वो
मस्जिद में सर पटकता है तो जिस के वास्ते
किस सितमगर का गुनाहगार हूँ अल्लाह अल्लाह
न कुछ सितम से तिरे आह आह करता हूँ
दिल था बग़ल में मुद्दई ख़ूब हुआ जो ग़म हुआ
मुद्दत हुई पलक से पलक आश्ना नहीं
हुस्न आईना फ़ाश करता है