कहाँ है दिल जो कहूँ होवे आ के दीवाना
कि उस की ज़ुल्फ़ की ख़ाली है इस घड़ी ज़ंजीर
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तिरी मेहराब में अबरू की ये ख़ाल
फ़ानूस तन में देख ले रौशन हैं जूँ चराग़
रखता है इबादत के लिए हसरत-ए-जन्नत
कभू जो शैख़ दिखाऊँ मैं अपने बुत के तईं
नज़र से जब अकस्ता है मिरा दिल
रखता हूँ मैं हक़ पर नज़र कोई कुछ कहो कोई कुछ कहो
ऐ ख़िज़ाँ भाग जा चमन से शिताब
रखे है शीशा मिरा संग साथ रब्त-ए-क़दीम
हुस्न आईना फ़ाश करता है
जब हुए 'हातिम' हम उस से आश्ना
मैं जितना ढूँढता हूँ उस को उतना ही नहीं पाता
रोना वही जो ख़ौफ़-ए-इलाही से रोइए