मैं जितना ढूँढता हूँ उस को उतना ही नहीं पाता
किधर है किस तरफ़ है और कहाँ है दिल ख़ुदा जाने
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दुनिया ख़याल-ओ-ख़्वाब है मेरी निगाह में
मैं जाँ-ब-लब हूँ ऐ तक़दीर तेरे हाथों से
इलाही तुझ से अब कहता है 'हातिम' इस ज़माने में
कोई है सुर्ख़-पोश कोई ज़र्द-पोश है
दहन है तंग शकर और शकर तिरा है कलाम
नज़र में बंद करे है तू एक आलम को
इस क़दर की सर्फ़ तस्ख़ीर-ए-परी-रूयाँ में उम्र
सौ बार तार तार किया तो भी अब तलक
रिश्ता-ए-उमर-दराज़ अपना मैं कोताह करूँ
कशिश से दिल की उस अबरू कमाँ को हम रखा बहला
जल्वा-गर फ़ानूस-ए-तन में है हमारा मन चराग़
हम छनालों की छोड़ दी यारी