रिश्ता-ए-उमर-दराज़ अपना मैं कोताह करूँ
आवे ये तार अगर तेरे ब-कार-ए-दामन
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कब ये दिल ओ दिमाग़ है मिन्नत-ए-शम्अ खींचिए
किस सितमगर का गुनाहगार हूँ अल्लाह अल्लाह
मैं जाँ-ब-लब हूँ ऐ तक़दीर तेरे हाथों से
अनल-हक़ की हक़ीक़त को जो हो मंसूर सो जाने
हो रहा है अब्र और करता है वो जानाना रक़्स
तुम्हारे इश्क़ में हम नंग-ओ-नाम भूल गए
'हातिम' उस ज़ालिम के अबरू को न छेड़
दहन है तंग शकर और शकर है तिरा है कलाम
मिला दिए ख़ाक में ख़ुदा ने पलक के लगते ही शाह लाखों
वक़्त फ़ुर्सत दे तो मिल बैठें कहीं बाहम दो दम
नज़र में बंद करे है तू एक आलम को
टूटे दिल को बना दिखावे