फ़ानूस तन में देख ले रौशन हैं जूँ चराग़
जो दाग़ दिल पे इश्क़ में तेरे दिए हैं हम
Gulzar
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ज़र्फ़ टूटा तो वस्ल होता है
जाने न पाए उस को जहाँ हो तहाँ से लाओ
क़िस्सा-ए-मजनूँ-ओ-फ़र्हाद भी इक पर्दा है
नज़र में उस की जो चढ़ता है सो जीता नहीं बचता
कौन दिल है कि तिरे दर्द में बीमार नहीं
दिल-ए-सद-चाक मिरा राह यहाँ कब पाए
हो रहा है अब्र और करता है वो जानाना रक़्स
केसर में इस तरह से आलूदा है सरापा
हम छनालों की छोड़ दी यारी
तन्हाई से आती नहीं दिन रात मुझे नींद
यूँ न हो यूँ हो यूँ हुआ सो क्यूँ
रात दिन यार बग़ल में हो तो घर बेहतर है