इश्क़-बाज़ी बुल-हवस बाज़ी न जान
इश्क़ है ये ख़ाना-ए-ख़ाला नहीं
Jaun Eliya
Habib Jalib
Anwar Masood
Parveen Shakir
Ahmad Faraz
Mir Taqi Mir
Rahat Indori
Gulzar
Wasi Shah
Allama Iqbal
Faiz Ahmad Faiz
Mohsin Naqvi
Love Poetry
Funny Poetry
Sad Poetry
Rain Poetry
Sharabi Poetry
Friends Poetry
(371) Peoples Rate This
जल्वा-गर फ़ानूस-ए-तन में है हमारा मन चराग़
कोई बतलाता नहीं आलम में उस के घर की राह
दिल उस की तार-ए-ज़ुल्फ़ के बल में उलझ गया
मेरा माशूक़ है मज़ों में भरा
मुद्दत हुई पलक से पलक आश्ना नहीं
तुम्हारे इश्क़ में हम नंग-ओ-नाम भूल गए
एक दिन पूछा न 'हातिम' को कभू उस ने कि दोस्त
किया था दिन का वादा रात को आया तो क्या शिकवा
पड़ी फिरती हैं कई लैला-ओ-शीरीं हर जा
जो कोई कि यार-ओ-आश्ना है
नज़र से जब अकस्ता है मिरा दिल
तिरे रुख़्सार से बे-तरह लिपटी जाए है ज़ालिम