इश्क़ उस का आन कर यक-बारगी सब ले गया
जान से आराम सर से होश और चश्मों से ख़्वाब
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फड़कूँ तो सर फटे है न फड़कूँ तो जी घटे
तेरे आगे ले चुका ख़ुसरव लब-ए-शीरीं से काम
केसर में इस तरह से आलूदा है सरापा
चला जा मोहतसिब मस्जिद में 'हातिम' से न बहसा कर
ये मसला शैख़ से पूछो हम इस झगड़े से फ़ारिग़ है
ज़ोर यारो आज हम ने फ़तह की जंग-ए-फ़लक
पहन कर जामा बसंती जो वो निकला घर सूँ
ऐ ख़िज़ाँ भाग जा चमन से शिताब
इस दौर के असर का जो पूछो बयाँ नहीं
होवे वो शोख़-चश्म अगर मुझ से चार चश्म
मिरा दिल बार-ए-इश्क़ ऐसा उठाने में दिलावर है
चाँद से तुझ को जो दे निस्बत सो बे-इंसाफ़ है