चाँद से तुझ को जो दे निस्बत सो बे-इंसाफ़ है
चाँद के मुँह पर हैं छाईं तेरा मुखड़ा साफ़ है
Gulzar
Anwar Masood
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Jaun Eliya
Ahmad Faraz
Allama Iqbal
Wasi Shah
Habib Jalib
Rahat Indori
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ऐ दिल न कर तू फ़िक्र पड़ेगा बला के हाथ
कोई देता नहीं है दाद बे-दाद
कहाँ है दिल जो कहूँ होवे आ के दीवाना
तिरे रुख़्सार से बे-तरह लिपटी जाए है ज़ालिम
जिस को देखा सो यहाँ दुश्मन-ए-जाँ है अपना
जब से तुम्हारी आँखें आलम को भाइयाँ हैं
सब्र बिन और कुछ न लो हमराह
देखते सज्दे में आता है जो करता है निगाह
तबीबों की तवज्जोह से मरज़ होने लगा दूना
होली
एक मुद्दत से तलबगार हूँ किन का इन का
ताबे रज़ा का उस की अज़ल सीं किया मुझे