ताबे रज़ा का उस की अज़ल सीं किया मुझे
चलता नहीं है ज़ोर किसूँ का क़ज़ा के हाथ
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राह में ग़म-ज़दा-ए-इश्क़ को क्या टोको हो
मज़रा-ए-दुनिया में दाना है तो डर कर हाथ डाल
सुनो हिन्दू मुसलमानो कि फ़ैज़-ए-इश्क़ से 'हातिम'
ये किस मज़हब में और मशरब में है हिन्दू मुसलमानो
मैं अपने दस्त पर शब ख़्वाब में देखा कि अख़गर था
तब्अ तेरी अजब तमाशा है
एक दिन पूछा न 'हातिम' को कभू उस ने कि दोस्त
जामा उर्यानी का क़ामत पर मिरी आया है रास्त
तू ने ग़ारत किया घर बैठे घर इक आलम का
इन दिनों सब को हुआ है साफ़-गोई का तलाश
जुम्बिश-ए-दिल नहीं बेजा तू किधर भूला है